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Tuesday, May 29, 2018

Books Publications

      जिन जातियों ,वर्गों ने पुस्तकों के लेखन में ध्यान दिया वे फारवर्ड हो गयीं और जिन्होंने ध्यान नहीं दिया वे बैकवर्ड और दलित हो गयीं /  ८५ %जनसंख्या ने इतना कम ध्यान लिखने पढ़ने में दिया या कह सकते हैं कि तत्कालीन ब्राह्मण धर्म की व्यवस्था से मज़बूर थीं जिस से वे बहुत बहुत पिछड़ गयीं , यहां तक कि आज भी वे उबर नहीं सकी हैं / आज स्वतन्त्रता के ७१ वर्षों बाद भी पुस्तकों ,समाचार पत्रों ,पत्रिकाओं के प्रकाशन और न्यूज़ चैनलों में भी  ये वर्ग अत्यंत पीछे हैं /  बौद्धिक संघ की मान्यता है कि अगर ये पिछड़े वर्ग देश की मुख्य धारा में आ जाएँ तो देश का कई गुना बौद्धिक विकास हो जायेगा परिणाम स्वरुप राष्ट्र का समग्र विकास जरूर होगा / 

                      आईये हम सब बौद्धिक संघ भारत के तले इस अभियान को सफल बनाएं /

                                                                                राज कुमार सचान होरी 
                                                                               राष्ट्रीय अध्यक्ष  
                                                                         बौद्धिक संघ ,भारत 
                                                 www.bauddhiksangh.com

बौद्घिक संघ, भारत

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Monday, May 28, 2018

मीडिया जरूरी ही नहीं अनिवार्य

आप अपने को मूल निवासी ,वंचित समाज, पिछड़ा ,दलित वर्ग कहते हैं पर क्या सोचा है कभी कि 1947 के बाद भी आप मीडिया में कुछ अपवाद छोड़ कर आप गये ही नहीं । मीडिया आपकी खबरें नहीं दिखाता,  आपके बारे ने लिखता नहीं  ,ये आरोप तो लगाते रहे पर मीडिया मे जाने के बजाय खेती किसानी में मरते रहे । आज भी स्थिति यही है और इसके लिए दोष ब्राह्मणवाद को देंगे । 

       हद है मूर्खता की । 85% जनता के पास मीडिया में 1% हिस्सेदारी भी नहीं है । लघु समाचार पत्रों, पत्रिकाओं तक को आप एकाध छोड़ दें तो निकालते नहीं । न्यूज पोर्टल न के बराबर । जब कहा जाता है कि भाई खेती जो पढ़ लिख गये हैं वे छोड़ दें तो उपदेश देंगे कि खेती नहीं करेंगे तो देश खायेगा क्या?  खुद भले भूखों मरे पीढ़ी दर पीढ़ी ।
         मीडिया वह क्षेत्र है जो प्रजातन्त्र को नियंत्रित करता है पर आप नहीं जायेंगे । एक वर्ष से बौद्घिक संघ, भारत  कोशिश में लगा है पर व्यर्थ । इन समाजों के बड़े नेता, धनपति सब कूप मंडूकता में लगे रहेंगे । सरकार तो बना लेंगे पर मीडिया क्रियेट नहीं करेंगे ।
       ये समाज बड़े ही  रूढ़ और जंग लगे हैं । इन पर बौद्धिक कार्यक्रमों के लिये तो जूं तक नहीं रेंगती ।
         कवि, लेखक भी वंचित समाज में नहीं के बराबर हैं पर जो हैं भी वे इन वर्गों के लिये तो शायद ही कभी कलम चलाते हों । सालों साल कोई किताब नहीं ।  दूसरों की किताबें पढ़ेंगे और रोयेंगे कि इनमे तो उनके खिलाफ लिखा है । अरे मूर्खो, खुद क्यों नहीं लिखते हो?  बस सेवा कार्यों मे लगे रहो और कहलाएं शूद्र । सेवा कार्य छोड़ कर शैक्षिक और बौद्घिक कार्यों को करें तब देखें कि क्रांति हुई कि नहीं?? 

      राजकुमार सचान होरी 
राष्ट्रीय अध्यक्ष 
बौद्घिक संघ, भारत 
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Friday, May 25, 2018

कलम थामें


आप पिछड़ेपन से निजात पाना चाहते हैं तो कलम थामिये । याद है जब पहली बार कलम थामी थी तब आप साक्षर बनें थे । फिर जिसने कलम थामे रखी वह आगे और आगे निकल गये । आपने बीच मे ही कलम छोड़ दी आप पिछड़ गये । पिछड़े कहलाने लगे । आप ही जैसे कलम छोड़ने वाले पिछड़ा वर्ग बन गये । जो कलमें थामे रहे वे सबके सब आगे निकल गये और अगड़ा कहलाने लगे ।

बौद्घिक संघ, भारत 
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Monday, May 14, 2018

बौद्घिक क्रांति के केंद्र --घरेलू पुस्तकालय

  

वंचित समाज धार्मिक कर्मकांडों और रीति रिवाजों में उलझ कर पीढ़ी दर पीढ़ी मूर्ति पूजा, देवी देवताओं में भटक कर शिक्षा और ग्यान से वंचित होता गया । शैक्षिक और बौद्घिक क्षेत्रों में पिछड़ जाने के कारण राजनैतिक, आर्थिक ,सामाजिक क्षेत्रों मे भी पिछड़ते रहे ।
           केवल ब्राह्मणवाद को दोष दे कर हाथ झाड़ लेने का कार्य बन्द होना चाहिए । निर्माण बौद्घिक संघ का नारा है । वंचितों को जितनी देवालयों की जरूरत नहीं उससे अधिक जरूरत है --- शिक्षालयों और पुस्तकालयों की ।
      आइये अपने अपने घर मे बैठक कक्ष मे एक अलमारी और रैक मे पुस्तकें रखना आरम्भ करें । जो भी जरूरी, जागरूक करने वाली पुस्तकें हों उनसे शुरुआत करें । धीरे धीरे अन्य पुस्तकें बढ़ायें ।  पत्रिकायें भी मंगायें । मोहल्ले या गांव में कम से कम एक छोटा ही सही सार्वजनिक पुस्तकालय और वाचनालय भी बनायें ।
           प्रत्येक दिन प्रात: और सायं इसी कक्ष में लेखनी की वन्दना अवश्य करें और परिवार में ऐसा करने को प्रोत्साहित करें । समाज मे एक नयी क्रांति आने लगेगी । लेखनी के सामने पाखंड टिक नहीं सकते। पिछड़ापन टिक नहीं सकता । समाज में वातावरण बनेगा तो पत्रकार, लेखक, कवि, बुद्धि जीवी, कलाकार पैदा होंगे । सदियों की बीमारी दूर होगी । बौद्घिक सत्ता में आगे आ कर राष्ट्र की मुख्य धारा में आ जायेंगे ।हम सब अपने अपने स्तर पर इस योजना को आगे बढ़ा कर अपना योगदान दे सकते हैं ।
          
          बौद्घिक संघ --- जिन्दाबाद 

        राजकुमार सचान होरी 
राष्ट्रीय अध्यक्ष, बौद्घिक संघ, भारत 
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Monday, May 7, 2018

घरेलू पुस्तकालय योजना

घरेलू पुस्तकालय योजना
घरेलू पुस्तकालय योजना
घरेलू पुस्तकालय योजना

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    समाज देवालयों के निकट और पुस्तकालयों से दूर जैसे जैसे होता गया पिछड़ता गया । उसके अन्दर की क्रांति ज्वाला भी बुझती गयी । भाग्यवादी, ईश्वरवादी और बहुदेववादी होता गया ।बौद्घिक सत्ता से दूरी ही हमारा मूल मर्ज है ।
               बौद्घिक संघ, भारत  के इस अभियान मे शामिल हो कर और अधिक से अधिक लोगों को शामिल कर हम उसे पथप्रदर्शक बना सकते हैं । ग्यान, विग्यान ही हमारा मोक्ष कर्ता होगा । आप इसकी शुरुआत अपने घर से करें । आपका बैठक कक्ष, ड्राइंग रूम या और कक्ष "घरेलू पुस्तकालय " बन जायेंगे अगर कुछ पुस्तकें, पत्रिकायें रैक, अलमारी आदि में रखने लगें और हम सदा निश्चय रखें कि भले ही एक घंटा ही सही प्रतिदिन वहां बैठ कर कुछ पढ़ेंगे । जो मन करेगा लिखेंगे और उसे छपने को भेजेंगे, सोशल मीडिया में पोस्ट करेंगे । आसपड़ोस लोगों से चर्चा कर बौद्घिक कार्यों को और करेंगे । भांति भांति की उपयोगी पुस्तकें एकत्रित करेंगे ।
              हम आप सोशल मीडिया में जितना लिखते हैं उसका संकलन भी पुस्तकालय में रखेंगे और उसको किताबों के रूप में भी लायेंगें । देखते देखते आपको लेखक की पहचान और सम्मान मिलने लगेंगे और समाज को मिल जायेगा एक नया लेखक, कवि, चिन्तक, बुद्धि जीवी ।
             आपके समाज में कलमकारों की ही तो कमी है । इस तरह जहां इनका कमी दूर हुई समाज पिछड़ेपन के अभिशाप से मुक्त होने लगेगा । एक उदाहरण से समझाता हूं ---- कायस्थ शूद्र मे आते हैं पर उन्होने बहुत पहले लेखनी के महत्व को पहचाना और स्थिति यह है कि उनमे कोई पिछड़ा नहीं । सब ब्राह्मण के समकक्ष हर क्षेत्र में ।
               घरेलू पुस्तकालय योजना से बौद्घिक संघ के सिपाही समाज में बदलाव लायेंगें, क्रांति करेंगे । पीढ़ी दर पीढ़ी का रोना बन्द होगा । निर्माण हमारा ध्येय है ---समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, पुस्तकों, गीत संगीत, कलाओं, पोर्टलों, चैनलों आदि आदि बौद्धिक कार्यों का निर्माण । ग्यान की मशाल ले कर फिरने वाला समाज ।     
        आप डाक्टर, इंजीनियर, अधिकारी, कर्मचारी, अध्यापक, नेता, मजदूर किसान ,व्यवसाई  कुछ भी हो सकते हैं पर अपने पेशे के साथ साथ लेखनी या अन्य कलाओं के बौद्धिक कार्यों को कर सकते हैं । बौद्घिक संघ यही तो चाहता है ।     आप पुराने उत्पीड़न के बार बार जिक्र करने मे समय क्यों बरबाद करें, नया करें खुद बदलें लोगों को बदलें ।
         पूजा करना ही है तो काल्पनिक देवी देवताओं, ईश्वर के स्थान पर वास्तविक और साक्षात लेखनी की करें । अपने कक्ष में रोज लेखनी पूजन करें । मेरे विचार से लेखनी पूजन है ज्यादा से ज्यादा लेखनी का प्रयोग जिसे हम सबने नौकरी या व्यवसाय पाने के बाद लगभग छोड़ दिया है । या किसान मजदूर संवर्ग जिसने लेखनी पकड़ी ही नहीं, पकड़ी भी तो जल्दी छोड़ दी  । तभी समाज का यह बड़ा हिस्सा सबसे ज्यादा गरीब, पद दलित, पिछड़ा हो गया है ।
             आइये "घरेलू पुस्तकालय "योजना में अपना अपना योगदान दें और वहां से शुरू करें प्रकाश । "तमसो मा ज्योतिर्गमय " या "अप्प दीपो भव " ही समाज को पिछड़ेपन के कलंक से सदा के लिये दूर कर देंगे और राष्ट्र की मुख्य धारा में चलने लगेंगे।
      मैं हमेशा कहता हूं --बौद्घिक क्रांति ---- सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक क्रांति की जननी है।
पुस्तकालय, वाचनालय ही इस बौद्घिक क्रांति के केंद्र बनेंगे । आइये देश में इनकी श्रृंखला बनायें ।
             
         जय बौद्घिक क्रांति
         जय बौद्घिक क्रांति

        जय बौद्घिक संघ
        जय बौद्घिक संघ

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राजकुमार सचान "होरी"
राष्ट्रीय अध्यक्ष -बौद्घिक संघ, भारत
www.bauddhiksangh.com

Saturday, May 5, 2018

बौद्धिक संघ टीवी -यू ट्यूब चैनेल

बौद्धिक संघ, भारत ने शुरू किया अपना यू ट्यूब चैनेल-- सब्सक्राइब करें और जुड़ें चैनेल से । आप अपने वीडियो भेज सकते हैं चैनेल के लिये ।