वे जानते हैं कि घाटा ही घाटा है खेती में,
तभी तो शहरी लाट साहब खेती नहीं करते ।
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कभी किसान पहने हो सलीके से कपड़े,
शहरी बाबुओं के सीने में सांप लोट जाते हैं ।
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तू फटेहाल रह, कर चाहे खेतों में खुदकुशी,
होरी यही नियति है ,तू भारतीय किसान है ।
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तेरे संघर्षों में साथ दे कोई गवारा नहीं,
अजीब लोग हैं ये, ये ही अन्नदाता कहते हैं ।
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राजकुमार सचान "होरी "
राष्ट्रीय अध्यक्ष बौद्धिक संघ, भारत
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