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Wednesday, June 6, 2018

किसानों के लिये अर्ज किया है

       वे   जानते हैं कि घाटा ही घाटा है खेती में, 
       तभी तो शहरी लाट साहब खेती नहीं करते ।

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      कभी किसान पहने हो सलीके से कपड़े,
     शहरी बाबुओं के सीने में  सांप लोट जाते हैं ।

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     तू फटेहाल रह, कर चाहे खेतों में खुदकुशी, 
     होरी यही नियति है ,तू भारतीय किसान है ।

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       तेरे संघर्षों में साथ दे कोई गवारा नहीं, 
     अजीब लोग हैं ये, ये ही अन्नदाता कहते हैं ।

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 राजकुमार सचान "होरी "
राष्ट्रीय अध्यक्ष बौद्धिक संघ, भारत 

    
   

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